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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़/हम देखेंगे लाज़िम है कि हम भी देखेंगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़/हम देखेंगे लाज़िम है कि हम भी देखेंगे

Faiz Ahmed Faiz Poetry हम देखेंगेलाज़िम है कि हम भी देखेंगेवो दिन कि जिसका वादा हैजो लोह-ए-अज़ल में लिखा हैजब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरांरुई की तरह उड़ जाएँगेहम महकूमों के पाँव तलेये धरती धड़-धड़ धड़केगीऔर अहल-ए-हकम के सर ऊपरजब बिजली कड़-कड़ कड़केगीजब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे सेसब बुत उठवाए जाएँगेहम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरममसनद पे बिठाए जाएँगेसब ताज उछाले जाएँगेसब तख़्त गिराए जाएँगेबस नाम रहेगा अल्लाह काजो ग़ायब भी है हाज़िर भीजो मंज़र भी है नाज़िर भीउट्ठेगा अन-अल-हक़ का नाराजो मैं भी हूँ और तुम भी होऔर राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदाजो मैं भी हूँ और तुम भी हो

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